सिलीगुड़ी,11 जनवरी (नि.सं.)। आजकल भारत में जितनी भी फसल उगाई जा रही है उसमें से ज़्यादातर फसलों में किसान कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं जो सेहत के लिए सही नहीं होता। 1960 के दशक में हरित क्रांति आने के बाद भारत में कीटनाशकों का उपयोग बढ़ा।
हालांकि, इससे कृषि उपज में काफी बढ़ोत्तरी हुई लेकिन इसका एक दुष्प्रभाव यह हुआ कि देश के लोग कीटनाशक मिला हुआ ज़हरीला खाना खाने पर मज़बूर हो गए लेकिन जैसे-जैसे लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है वैसे-वैसे लोग इसके विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।इस दिशा में आगे बढ़ते हुए सिलीगुड़ी के दो युवाओं ने मिलकर हाइड्रोपोनिक्स विधि से जैविक खेती करना शुरू किया है।हाइड्रोपोनिक्स विधि में बिना मिट्टी के पानी में खेती की जाती है। इसमें खास बात यह भी है कि परंपरागत खेती की तुलना में इस विधि से खेती करने में पानी भी कम लगता है।
कुछ मामलों में तो इसमें लगभग 90 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। जिन क्षेत्रों में पानी की कमी होती है उनमें इस विधि से खेती करना फायदे का सौदा हो सकता है।सिलीगुड़ी के दो युवा विकास चौधरी और रतीस चौधरी एक साथ मिलकर सालबाड़ी में हाइड्रोपोनिक्स विधि से खेती शुरू की है। दोनों ने हाइड्रोपोनिक्स विधि से स्ट्रोबरी, रेड कैपसिकन और यलो कैपसिकन, शिमला मिर्च, फूल गोभी, करैला, मिर्ची, टमाटर की खेती शुरू किया है।
हाइड्रोपोनिक्स विधि से दोनों ने दो महीना पहले खेती कर स्ट्रोबरी का फल भी उगा चुके है। दोनों युवाओं के इस विधि ने सिलीगुड़ी को हाइड्रोपोनिक्स खेती से जोर दिया है।दरअसल, बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण जब फसल और पौधों के लिये जमीन की कमी होती जा रही हो तो बिना मिट्टी के पौधे उगाने वाली यह विधि काफी उपयोगी होगी।
इससे आप अपने फ्लैट में या घर में भी बिना मिट्टी के पौधे और सब्जियां आदि उगा सकते हैं। बिना मिट्टी के पौधे उगाने की इस विधि को हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं। सिलीगुड़ी में हाइड्रोपोनिक्स विधि से खेती करने के लिए रतीस और विकास ने मध्यप्रदेश से इसकी पहले ट्रेनिंग ली है। उसके बाद सिलीगुड़ी एग्रीकल्चर विभाग से बात करने के बाद राज्य सरकार के आत्मा प्रोजेक्ट की सहयोगिता से हाईड्रोपोनिक्स विधि से खेती शुरू किया। करीब 6 महीने की हाइड्रोपोनिक्स विधि की खेती में दोनों को काफी सफलता मिली है।
जिस वजह से अब स्थानीय व्यवसायियों ने दोनों को जगनी, आई बर्ग लिटस, बेबीकॉर्न, चायनीज कैबेज, ब्रोकली, सैलरी, बेसिलिफ, पासले , लेमन ग्रैप्स, ड्रैगन फ्रूट उगाने की मांग की है।विकास चौधरी ने कहा कि हाइड्रोपोनिक्स विधि ने उसे नई राह दिखाई है। उन्होंने कहा कि 6 महीना में इस विधि से आशा से ज्यादा सफलता मिली है। जिस वजह से वे अब इस विधि को और ज्यादा फैलायेंगे।
वहीं, रतीस चौधरी ने कहा कि इस विधि से भारत के कई राज्यों में खेती शुरू हुई है। लेकिन उत्तर बंगाल में पहली बार इस विधि से वे खेती शुरू किया है। हाइड्रोपोनिक्स विधि से पानी की तो बचत होती है। साथ ही मेहनत भी कम पड़ता है।
रतीस चौधरी ने कहा कि अगर किसान भी इस विधि का उपयोग करें तो उन लोगों को भी मेहनत कम पड़ेगा और फायदा ज्यादा होगा। सबसे महत्वपूर्ण इस विधि में खर्च कम पड़ती है। साथ ही इस विधि के माध्यम से इस सीजन के साथ साथ अनसीजनल फल का भी उत्पादन किया जाता है।