वायलिन बजाकर जीवन जीने का सहारा तलाश रहे सुधांशु दास

राजगंज, 30 मार्च (नि.सं.)। सुधांशु दास का वायलिन ही जीवनसाथी है। वह मंदिरों में वायलिन बजाकर अपना जीवनयापन कर रहे है। पिछले दो वर्षों से सुधांशु दास राजगंज के भ्रामरी देवी के मंदिर में वायलिन बजाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर रहे हैं।


वहीं, मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा जो रूपये मिलते है, वे उसी से अपना दिन गुजार रहे है। सुधांशु दास ने कहा कि उनका घर अलीपुरद्वार जिले के सलसलाबाड़ी में है। बचपन में अपने दादा जी से उन्होंने वायलिन बजाना सीखा था। उन्होंने कहा कि उनकी शादी होने के बाद उन्होंने घर संसार चलने के लिए कई काम किये, लेकिन वायलिन बजाना कभी नहीं छोड़ा।

कई साल पहले एक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद उनका काम काज छुट गया। जिसके बाद वायलिन ही उनका एक मात्र सहारा बन गया। वायलिन बजाकर जो रूपए उन्हें मिले उससे उन्होंने किसी तरह अपनी इकलौती बेटी की शादी करवाई। दूसरी तरफ, पत्नी की मृत्यु होने के बाद वे पूरी तरह अकेले हो गये है। जिसके बाद अब वायलिन ही उनका एकमात्र सहारा और वायलिन ही जीवनयापन करने का जरिया बन गया है।


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