मां के पास रहने के लिए आर्मी छोड़ साइंटिस्ट बनने का रखा लक्ष्य- पद्मश्री एकलव्य शर्मा

सिलीगुड़ी, 27 जनवरी (नि.सं.)। एक दशक से भी लंबे समय से विज्ञान और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में किये गये अभूतपूर्व योगदान के लिए दार्जिलिंग जिले के विशिष्ट वैज्ञानिक एकलव्य शर्मा को केंद्र सरकार पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित करेंगी। एकलव्य शर्मा को पद्मश्री अवार्ड मिलने की खबर से पहाड़ से लेकर समतल तक खुशी है। पद्मश्री अवार्ड की घोषणा के बाद सिलीगुड़ी टाइम्स के साथ एकलव्य शर्मा ने खास बातचीत की। 


उन्होंने बताया कि एक सामान्य आर्मी घर का लड़का सिर्फ अपनी मां के पास रह सके इसके लिए उसने साइंटिस्ट बनने का लक्ष्य रखा था। यह लक्ष्य आसान नहीं था। कर्शियांग के पहाड़ी दुर्गम रास्ते की तरह ही एकलव्य शर्मा की साइंटिस्ट बनने का राह था। प्राथमिक पढ़ाई कर्शिंयाग में करने के बाद एकलव्य शर्मा अपने साइंटिस्ट बनने के सपना को पूरा करने के लिए आखिरकर अपनी मां और घर से मीलो दूर बनारस गए।

वहां पर अपने चाचा के यहां पर रह कर ग्रेजुएट और उसके बाद पीएसडी किए। इसके बाद अपने बायोडायवर्सिटी विषय पर रिसर्च करने के लिए कालिंगपोंग पहुंचे। जहां से उनके वैज्ञानिक बनने का सफर शुरू हुआ। कालिंगपोंग के बाद माउंटेन हिमालयन रीजनल पर भी रिसर्च किए। इसके बाद आठ देशे की टीम के साथ विदेशों में भी रिसर्च किये। उन्हें इंडियन नेशनल साइंस काउंसिल से यंग साइंटिस्ट के वर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। 


एकलव्य शर्मा आगे बताते है कि पिता और बड़े चाचा इंडियन आर्मी थे। जबकि छोटे चाचा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। आठ वर्ष की उम्र में उनके परिवार वालों ने पूछा कि वह आर्मी के जवान या प्रोफेसर बनना चाहते है। उस वक्त उन्हें अपनी मां के पास रहना था। जिस वजह से वह घर से दूर जाना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने साइंटिस्ट बनने की इच्छा जाहिर की। आज वो अपनी मां के आशीर्वाद से ही इस मुकाम पर पहुंचे है।

उन्होंने अपना रिसर्च भागवत गीता के उपदेश कर्म करो फल की चिंता नहीं उसके के आधार पर किये है। लेकिन उन्हें पद्मश्री अवार्ड  मिलेगा ऐसा उन्होंने कभी सोचा नहीं था। गत 25 जनवरी को उन्हें पता चला कि केंद्र सरकार पद्मश्री अवार्ड देगी। यह जानकर वह काफी खुश हुए। यह सम्मान उन्हे और भी काम करने की प्रेरणा देगी।

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